Thoughts on ‘Positive Thinking’ in Hindi:
हमारी ज़िन्दगी का हर एक लम्हा और उसकी दिशा हमारी सोच यानि Thinking की ही देन हैं फिर चाहे वह Positive Thinking हो या Negative Thinking हो। हम सबकी हमारी Life को लेकर जो Sucess होने वाली सोच है, वह कहीं ना कहीं हमारे साथ घट रही घटनाओ और उसके बाद शुरु हुई हमारे अंतःमन में उठे विचारों और भावनावों से प्रेरित होती है। इस लेख के माध्यम से छोटा-सा प्रयास उसी Thinking से जुड़ी हुई सोच और विचार पर!
हमारी ज़िन्दगी हमारे विचारों व भावनावों का अद्भुत संगम हैं। विचार व भाव ही हैं, जो हमे कभी ख़ुशी देते हैं, तो कभी दुखी करते हैं, यही हमे कभी गुदगुदाते है तो कभी उदास करते हैं। विचार हमारे दिमाग में हर पल आते-जाते रहते हैं, लेकिन उन्हें स्वीकारना, अपनाना और मानना हम पर निर्भर करता हैं।
हमारे दिमाग में हर दिन तरह तरह के हजारों विचार जन्म लेते है। इनमें से किन विचारों को अपनाया जाए और किन्हें नहीं, इसका चुनाव करने में हमारी भावनाओं का बहुत ही अहम रोल निभाती है।
→ भावनाएँ अच्छी और बुरी,
भावनाएँ दोनों ही तरह की अच्छी या फिर बुरी हो सकती हैं। जिन विचारों के साथ अच्छी भवनाएँ जन्म लेती है, उनको हमे अपनाना चाहिए और उनके साथ लगातार आगे बढ़ना चहिए। परन्तु बुरी भावनाओं के साथ उत्पन्न होनेवाले विचारों की हमेशा ही उपेक्षा करनी चाहिए, उनसे जितना हो बचना चहिए।
जिस तरह से किसी पेड़-पोधों की जड़े जमीन में होती है और अपनी जड़ों द्वारा ये जमीन से जरुरी पोषक तत्वों को ग्रहण करता है, ठीक उसी प्रकार हमारी जड़े हमारी चिंतन में होती है। जिस स्तर के विचारों को हम आसपास के माहौल से या पास के सामाजिक वातावरण से ग्रहण करते हैं, ठीक उस्सी तरह के हम बनते चले जाते हैं।
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हमारा जीवन विचारों का ही ठोस स्वरुप:
हमारा जीवन हमारे दिमाग में चल रहें विचारों का ही तो एक ठोस स्वरुप होते हैं। जैसे विचार होंगे, वैसी ही हमारी भावनाएँ होंगी, वैसा ही हमारा व्यक्तित्व होगा और वैसा ही हमारा जीवन होगा। अगर हम एक सवाल खुद से करें कि हम क्या हैं? तो इसके जवाब में एक ही शब्द कह सकते हैं: विचारों का पुंज।
आपके अपने दृष्टिकोण के आधार पर ही जीवन का बाह्यस्वरूप बनता है और आतंरिक स्तर पर निर्माण होता है। हमारे सोचने के गलत ढंग का नाम ही तो दुःख है और सही चिंतन सुख का। उत्थान-पतन की दोनों धाराएँ अपनी ही मान्यताओं और रुचियों की चाल लेकर सीधी -उलटी दिशाओं में प्रवाहित होती है। उन्ही के कारण देवत्व प्राप्त होता है और वे ही हमे दानव स्तर का बना देती हैं।
इसका कारण ये भी हो सकता है कि “हमारे विचार चुम्बक की तरह होते हैं। जैसा हम सोचते हैं, उसी तरह के अन्य विचारों को हम अपनी ओर आकर्षित करते जाते हैं और फिर यही विचार हमारे मन को गढ़ते चले जाते हैं।”
विचार सूक्ष्म होते है, इन्हें कभी देखा तो नहीं जा सकता, परन्तु महसूस जरुर किया जा सकता हैं। इन विचारों से सम्बंधित भावनाएँ इसीलिए हमारे शरीर में तुरंत ही प्रकट होने लगती हैं, जैसे:- प्रसन्नता या दुःख के रूप में, साहस या भय के रूप में, दृढ़ता या निर्बलता के रूप में। इन विचारों व भावनाओं के अनुरूप ही हमारे शरीर और उसके कार्य करने की झमता, उसकी कार्यप्रणाली व अंतःस्त्रावी ग्रंथियां भी प्रभावित होती है और यही कारण है की विचार और भवनावों के अनुरूप हम ख़ुशी, गम, क्रोध के साथ साथ स्वस्थ और बीमार होते हैं।
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→ हमारे विचार और कल्पनाशक्ति:
स्रार्थक विचारों के उत्पन्न होते ही आपकी कल्पनाशक्ति उन्हें साकार करने के लिए सक्रिय हो उठती है। हमारे विचार ही हमे मंजिल दिखाते हैं और उस मंजिल तक पहुचने के लिए हमारी कल्पनाशक्ति ही हमे रास्ता भी बताती है, इसके माध्यम से हम योजनाएं बनाते हैं और उन पर कार्य करते हुए अपने मंजिल को प्राप्त करते हैं। इस तरह हमारे विचार हमारी कल्पनाओं को और हमारी कल्पनाएँ हमारे लक्ष्य को तय करती हुई एक रूपरेखा देती है और मंजिल तक जाने के लिए जरुरी संसाधनों को तैयार करती है।
हमारे विचारों को धरातल पर उतारने के लिए योजनाओ की जरुरत होती हैं और योजनाएं कल्पनाशक्ति के माध्यम से बनती है। इन योजनाओ पर कदम बढ़ाते हुए ही हम अपने विचारों के वास्तविक स्वरुप को साकार होते हुए देखते हैं। उदहारण के तौर पर Ford Motors के संस्थापक Hennery Ford जब कार के सपने को साकार कर रहें थे, तो उनके साथ और आसपास के लोग उनपर हँसते थे, लेकिन हेनरी को खुद पर यकीन था कि उनकी कल्पना साकार रूप लेगी।
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उन्हें पता था कि विचार चुम्बकीय होते है और कोई भी व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह अपने लक्ष्य तक तीन स्तरों से होकर ही पहुँच पाती हैं। पहला – आत्मविश्वास, दूसरा – दुरदर्शिता और तीसरा – निरंतरता यानि लगातार प्रयास।
खुद के कामयाब होने का भरोसा ही व्यक्ति के अंदर आत्मविश्वास को जन्म देता है। दूर तक देखने और सोचने की कला ही हमें अपनी मंजिल का दर्शन कराती हैं। इसी आधार पर कार्य करके हेनरी फ़ोर्ड ने अपनी कल्पना को साकार रूप प्रदान किया। ठीक इसी प्रकार हमे अपने जीवन में सकारात्मक सोच और विचारों के सहारे ही निरंतर आगे बढ़ना चाहिए।
जीवन में दिन और रात की तरह ही प्रकाश और अंधकार आता हैं, ऐसे समय में हमे हमेसा अच्छे विचारों, सकरात्मक सोच और उर्जा के साथ ही सही भावनाओं और कल्पनाओं का चयन करना चाहिए, क्यूंकि यही हमारे जीवन को नकारात्मक सोच के अँधेरे रूपी गर्त में जाने से बचा सकती है और हमे इनसे सुरक्षित रख सकती है।
अपने लेख को विराम देते हुए अंत में, यहीं कि,
हमारी नकारात्मक सोच और अशुभ भावनाएं, हमारे अंदर निर्रथक विचारों को जन्म देती है और जीवन नकारात्मकता की ओर मुड़ जाता हैं। जबकि सकारात्मक सोच और शुभ चिंतन, हमारे अंदर श्रेष्ठ विचारों को जन्म देती है जो हमारे जीवन को सकारात्मकता देती हैं और जीवन को श्रेष्ठता की ओर ले जाती हैं इसलिए सदा सकारात्मक सोच को ही अपने जीवन का साथी बनाकर रखना चाहिए।