कुन्तीपुत्र कर्ण की धर्मनिष्ठता:
कुन्तीपुत्र और दानवीर कर्ण के बारे में आप जानते ही है कि किस प्रकार से कर्ण कौरवों की सेना में होते हुए भी महान धर्मनिष्ठ योद्धा थे। यही कारण था कि भगवान श्रीकृष्ण ने भी उनकी प्रशंसा किया करते थे।
जैसा कि महाभारत में वर्णन आता हैं कि युद्ध में कर्ण ने अर्जुन को मारने की प्रतिज्ञा की थी। उसे सफल बनाने के लिए खांडव वन के महासर्प अश्वसेन ने इसे उपयुक्त अवसर समझा।
अर्जुन से अश्वसेन शत्रुता रखता था, पर काटने का अवसर नहीं मिलता था। उसने युद्ध के समय का लाभ लेने, अपनी शत्रुता के कारण, कर्ण के तरकस में जा घुसा, ताकि जब उसे धनुष पर रखकर अर्जुन तक पहुँचाया जाए, तो अर्जुन को काटकर प्राण हर ले।
युद्ध में कर्ण के बाण भी चले। अश्वसेन वाला बाण भी चला, लेकिन जब भगवान श्रीकृष्ण ने वस्तुस्थिति को समझा और उस समय भगवान श्रीकृष्ण को अर्जुन की मृत्यु अपने सामने दिखाई पड़ी। तब उन्होंने अर्जुन को बचाने के लिए अपने पैर से रथ को दबा दिया। अश्वसेन वाला बाण मुकुट काटता हुआ अर्जुन के सर के ऊपर से निकल गया।
असफलता पर क्षुब्ध अश्वसेन प्रकट हुआ और कर्ण से बोला:
“अबकी बार अधिक सावधानी से बाण चलाना, साधारण तीरों की तरह मुझे न चलाना। इस बार अर्जुन वध होना ही चाहिए। मेरा विष उसे जीवित रहने न देगा।”
इस पर कर्ण को भारी आश्चर्य हुआ। उसने उस कालसर्प से पूछा:
“आप कौन हैं और अर्जुन को मारने में इतनी रूचि क्यों रखते हैं?”
तब अश्वसेन सर्प ने कर्ण से कहा कि:
“अर्जुन ने एक बार खण्डव वन में आग लगाकर मेरे परिवार को मार दिया था, इसलिए उसी का प्रतिशोध लेने के लिए मैं व्याकुल रहता हूँ। उस तक पहुँचने का अवसर न मिलने पर आपके तरकस में बाण के रूप में आया हूँ। आपके माध्यम से अपना आक्रोश पूरा करूँगा।”
कर्ण ने उसकी सहायता के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुए वापस लौट जाने के लिए कहा, “भद्र, मुझे अपने ही पुरुषार्थ से नीति युद्ध लड़ने दीजिए। आपकी अनीतियुक्त सहायता लेकर जीतने से तो हारना अच्छा है।”
कालसर्प ने कर्ण की नीति-निष्ठा को सराहा और वापस लोटते हुए उसने कर्ण से कहा:
“कर्ण तुम्हारी यह धर्मनिष्ठा ही सत्य है, जिसमे अनीतियुक्त पूर्वाग्रह को, छद्म को कहीं स्थान नहीं।”
हिंदू धर्म-ग्रंथों से जुडी अन्य पौराणिक कथाएं:
अगर आप भी अपनी हिंदी रचनाएँ, हिंदी कहानियाँ (Hindi Stories), प्रेरक-लेख (Motivational articles) लाखों लोगों तक पहुँचाना चाहते हैं, तो हमसे info[at]unmukthindi[dot]in पर संपर्क करें !!