Motivational Story In Hindi
एक शहर में एक बहुत रईस आदमी था। उस रईस के यहां एक नौकर काम किया करता था और उसका नाम रामू था। रामू जब भी अपने काम से फुर्सत होता तो पास स्थित मुर्तियों की दुकान के बाहर खड़ा हो जाता और मुर्तियां बनते देखता और सोचता की काश वह भी मूर्ति बनाना जानता तो उसे नौकर का काम नहीं करना पड़ता।
इसी तरह वह रोज ही ऐसा करता और अब तो उसे मुर्तियां बनते देख मुर्तियों की कुछ समझ भी आ गई थी। कई बार वह मुर्ति बनाने में कारीगरों की मदद कर देता।
एक बार मुर्तियों की दुकान वाले मालिक ने उससे कहा कि तुम यहां आकर फालतु में अपना समय बर्बाद क्यों करते हो। तुम्हारा मालिक तुम्हें नौकरी से निकाल देगा..? रामू ने दुकानदार से कहा मुझे मुर्तियां बनते देखना बहूत ही अच्छा लगता है। उसका जवाब सुनकर दुकान का मालिक चुपचाप वहाँ से चला गया।
एक दिन रामू के मालिक ने कुछ लोगों को अपने घर पर खाने के लिए बुलाया। उस दावत स्थल की सजावट की जिम्मेदारी उसके घर के मुख्य नौकर की थी, लेकिन उससे सजावट ठीक से नहीँ हो पा रही थी। इसी वजह से घर का मुख्य नौकर थोडा परेशान भी था उसे इस तरह से परेशानी मेँ देखकर रामू ने कहा कि आप कहे तो मैँ कोशिश करूं?
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परेशानी के चलते मुख्य नौकर ने निराश मन के साथ हामी भर दी। रामू ने कई किलो मक्खन मंगवाया और जमे हुए मक्खन से उसने एक बहूत ही शानदार चीता बनाया और मेज पर सजा दिया। दावत में आए सभी लोगों ने मुर्ति की काफी तारीफ की।
मेहमानों की भीड़ मेँ एक मुर्तिकला विशेषज्ञ और मूर्तियों के बहुत बड़े व्यापारी भी थे। जब उन्हेँ पता चला कि यह मुर्ति एक मामूली नौकर नेँ बनाई है तो उसनेँ हैरान होकर रामू से पूछा कि आपने यह कारीगरी कहां से सीखी.?
इस पर रामू ने कहा कि पास ही में एक मूर्ति की दुकान है, वहां मुर्तियां बनते देखकर ही मैनें खुद सीख ली। उसकी इस बात से मूर्तियों का व्यापारी बहुत प्रभावित हुआ और उसे अपने यहाँ मुख्य मूर्तिकार के रूप में काम करने को रख लिया।
रामू को अपने सच्चे मन से की गई लगन का फल मिल गया था, उसका सपना सच हो गया था।
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