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Reading: बगुला भगत और केकड़ा – मुसीबत के समय संयम और बुद्धिमानी से काम करना (Hindi Moral Story)
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Story > बगुला भगत और केकड़ा – मुसीबत के समय संयम और बुद्धिमानी से काम करना (Hindi Moral Story)
Story

बगुला भगत और केकड़ा – मुसीबत के समय संयम और बुद्धिमानी से काम करना (Hindi Moral Story)

बगुला भगत और केकड़ा की कहानी: हमें किसी भी मुसीबत के समय भी संयम और बुद्धिमानी से काम करना चाहिए।! पढ़िए पंचतंत्र की प्रेणादायक कहानियाँ.. Bagula aur Kekda ki kahani in Hindi

Sunita
Last updated: April 11, 2024 12:48 pm
Sunita
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8 Min Read
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भगत बगुला और केकड़ा की कहानी:

bagula bhagat aur kekada short hindi story
शिक्षाप्रद नैतिक कहानी – भगत बगुला और केकड़ा

किसी जंगल में एक तालाब में कई मछलियाँ रहती थी और उस तालाब के पास के पेड़ों पर कई पंछियाँ भी रहा करती थी। उन्ही पंछियों में एक बुढा बगुला भी था, जिसे अपने खाने के लिए भी दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता था, जिस कारण उसे कई बार भूखा ही रहना पड़ता था। इसी कारण वह बहुत ही कमज़ोर हो गया था।

वह हमेशा आसानी से अपना पेट भरने के लिए अलग-अलग तरीकों के बारे में सोचता रहता था, जिससे उसे बुढ़ापे में बिना ज्यादा मेहनत किये, आसानी से खाना मिल जाएँ।

एक दिन उसने ऐसी योजना सोची, जिससे उसका पेट भी भर जाये और ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ेगी। उस बूढ़े बगुले ने अपनी योज़ना को पूरा करने के लिए, एक दिन तालाब किनारे खड़े होकर ज़ोर ज़ोर से रोने लगा और आसूं गिराना शुरु कर दिया।

तालाब में रहने वाले एक केकडे ने उसे इस तरह रोता देख, बाहर आया और बोला, “वो बगुला चाचा, क्यूँ रो रहे? क्या हुआ?” बगुले ने अपनी चाल कामयाब होता देख, उस केकड़े से रोते-रोते बोला, “क्या बताऊं भतीजे केंकड़े, मुझे अपने किए हुए सारे बुरे कर्मो पर बहुत पछतावा हो रहा है!” मैंने अपनी भूख मिटाने के लिए, न जाने आज तक कितनी मछलियों का शिकार किया। मैं अपने स्वार्थ में कितनों मछलियों की जानें ली हैं।”

लेकिन, भतीजे केकडा, अब मुझे इस बात का एहसास हो गया है, कि मैंने अपने जीवन में बहुत सारे पाप किए हैं, और इसीलिए, मैंने अब यह वचन लिया है, कि अब मैं पुरे जीवन भर एक भी मछली का शिकार नहीं करूंगा।”

यह भी पढ़ें: बिल्ली और बंदर की कहानी – लालच करने का नुकसान

बगुले की बात सुन कर केंकड़े ने कहा, “अरे बगुले चाचा, ऐसा करने से तो तुम भूखे मर जाओगे।” यह सुनकर बगुले ने कहा, भतीजे, “किसी और की जान लेकर अपना पेट भरने से तो, भूखे पेट मर जाना ही अच्छा है। वैसे भी अब जिंदा रहना ही कितने दिन हैं? कल ही मुझे त्रिकालदर्शी बाबा मिले थे, जिन्होंने बताया कि बहुत जल्द ही समय में 12 साल के लिए भयंकर सूखा पड़ने वाला है, जिस कारण सभी जीव मर जाएंगे। उन महान त्रिकालदर्शी बाबा की भविष्यवाणी कभी गलत नहीं होती।”

केंकड़े ने यह बात जाकर तालाब के सभी जीवों को बता दी, कि कैसे बगुले ने भक्ति का मार्ग अपना लिया है और कुछ ही समय में भयंकर सूखा पड़ने वाला है।

तालाब में रहने वाले कछुए ने चौंक कर पूछा, तो फिर इस भयंकर पड़ने वाले सूखें का क्या हल है?” फ़िर उस तालाब के सभी जीव मछलियां, कछुए, केकड़े, दौड़े-दौडे बगुले के पास गए, और बोले “भगत बगुले चाचा, अब तुम ही हमें उस भयंकर पड़ने वाले सूखें से बचने का कोई रास्ता बताओ, तुम तो महाज्ञानी बन ही गए हो।”

इस पर बगुले भगत ने कहा, “त्रिकालदर्शी बाबा ने मुझे कहा था, कि यहाँ से कुछ दूर एक पहाड़ के दूसरी ओर एक विशाल नदी बहती है।” हम सभी उस नदी में जाकर रह सकते हैं, क्यूंकि उस नदी का पानी कभी नहीं सूखता। तुम सभी कहो तो, मैं एक-एक कर आप सभी को अपनी पीठ पर बैठा कर वहां छोड़कर आ सकता हूं।”

उसकी यह बात सुनकर सारे जानवर खुश हो गए और अपनी सहमती दे दी। बगुला अपने मन-ही-मन में यह सोच रहा था कि दुनिया भी कैसे- कैसे मूर्ख होते है, इतनी आसानी से मेरी झूटी बातों में आ गए। अगले दिन से तालाब के एक-एक जीव को बगुले ने अपनी पीठ पर ले जाना शुरू कर दिया। वह उन्हें उस तालाब से कुछ दूर एक चट्टान पर ले जाकर मार डालता और फ़िर उन्हें आराम से खा जाता। कई बार तो वह एक बार में दो जीवों को ले जाता और भर पेट भोजन करता।

ऐसा रोज़-रोज़ करने से, उस चट्टान पर की हड्डियों का ढेर लग गया था। ऐसा कई दिनों तक चलता रहा और बगुले की सेहत भी सुधर गयी, पंखो पर चमक भी तेज़ हो गई। तालाब के सभी जीव कहने लगे, “भगत बगुला के पुण्यों के कारण ही, उसमे यह शारीरिक तेज़ आया हैं।”

सभी जीवो को रोज़-रोज़ ले जाता देख, एक दिन केंकड़े ने बगुले से कहा, “वो बगुला चाचा, हर रोज तुम किसी न किसी को उस विशाल नदी में ले जाते हो। मेरी बारी कब आएगी?” केंकड़े की बात सुनकर बगुले ने कहा, “ठीक है, आज मैं तुम्हें ही ले चलता हूं।” ऐसा कहकर उसने केंकड़े को अपनी पीठ पर बैठने को कहा और फ़िर उड़ चला।

कुछ दूर उड़ान भर ने के बाद, जब बगुला उस चट्टान के पास पहुंचा, तो केंकड़े ने वहाँ उस चट्टान पर कई जीवों की हड्डियां देखी। उसने जीवों की हड्डियां देखते ही, तुरंत बगुले से पूछा कि वह नदी और कितनी दूर है? और यह सभी हड्डियां किसकी हैं?

केंकड़े की बात सुनकर बगुले ने सोचा, कि अब सच्चाई बताने से कोई दिक्कत नहीं हैं और जोर-जोर से हंसते हुए बोला, “वहाँ कोई विशाल नदी नहीं है और कोई सुखा नहीं पड़ने वाला हैं, यह सभी हड्डियां तालाब में रहने वाले तुम्हारे उन साथियों की हैं, जिनको खाकर मैंने अपनी भुख मिटाई हैं।”

उस भगत बगुले की, यह बात सुनते ही, केंकड़े ने बगुले की गर्दन को अपने पंजों से ज़ोर से पकड़ लिया। जिस कारण, कुछ ही देर में बगुले के प्राण निकल गए। इस के बाद, केंकड़ा लौट कर वापस तालाब में चला गया और तालाब में रहने वाले अपने सभी साथियों को भगत बगुले को सारी बात बताई।

तालाब में रहने वाले सभी जीवो ने केंकड़े को बहुत धन्यवाद दिया और उसकी बुद्धिमानी की जय जयकार करने लगें।

यह भी पढ़ें:

  • पंचतंत्र की कहानियाँ – भेड़िया और सारस
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सीख: हमें कभी भी किसी कि बातों पर आंख बंद कर विश्वास नहीं करना चाहिए, और किसी भी प्रकार के मुसीबत के समय में भी अपने संयम और बुद्धिमानी से काम लेना चाहिए।

अगर आपको यह बच्चों के लिए शिक्षाप्रद कहानी अच्छी लगी तो, आप इस Hindi Moral Story for Kids को अपने परिवार-जनों के साथ ज़रूर शेयर करें।

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