Avoid Eating Rice on Ekadashi: धर्म शास्त्रों के अनुसार एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित है। ऐसा माना गया है कि इस दिन चावल खाने से प्राणी रेंगने वाले जीव की योनि में जन्म पाता है, किन्तु द्वादशी को चावल खाने से इस योनि से मुक्ति भी मिल जाती है।
एकादशी की विशिष्टता बताते हुए शास्त्रों में कहा गया है-
‘न विवेकसमो बन्धुर्नैकादश्या: परं व्रतं’
अर्थात् – विवेक के सामान कोई बंधु नहीं है और एकादशी से बढ़ कर कोई व्रत नहीं है।
पांच ज्ञानेन्द्रियां, पांच कर्मेन्द्रियां और एक मन, इन ग्यारहों को जो साध लेता वह प्राणी एकादशी के समान पवित्र और दिव्य हो जाता है। एकादशी विष्णु से उत्पन्न होने के कारण विष्णुस्वरुपा है। जहां चावल का संबंध जल से है, वहीं जल का संबंध चंद्रमा से है। पांचों ज्ञान इन्द्रियां और पांचों कर्म इन्द्रियों पर मन का ही अधिकार है। मन ही जीवात्मा का चित्त स्थिर-अस्थिर करता है।
ज्योतिष-शास्त्र के अनुसार मन और श्वेत रंग का स्वामी भी चंद्रमा ही हैं, जो स्वयं जल, रस और भावना का कारक हैं, इसीलिए जलतत्त्व राशि के जातक भावना प्रधान होते हैं। इसलिए एकादशी के दिन शरीर में जल की मात्र जितनी कम रहेगी, व्रत पूर्ण करने में उतनी ही अधिक सात्विकता रहेगी।
महाभारत काल में वेदों का विस्तार करने वाले भगवान व्यास ने पांडव पुत्र भीम को इसीलिए निर्जला एकादशी (बगैर जल पिए) करने का सुझाव दिया था। आदिकाल में देवर्षि नारद ने एक हजार वर्ष तक एकादशी का निर्जल व्रत करके नारायण भक्ति प्राप्त की थी। चंद्रमा मन को अधिक चलायमान न कर पाएं, इसीलिए व्रती इस दिन चन्द्रमा के अधिपत्य वाली वास्तु चावल को खाने से परहेज करते हैं।
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(दी गई जानकारी धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।)