लोमड़ी और खट्टे अंगूर की कहानी:
एक बार कि बात हैं, कि किसी जंगल में एक लोमड़ी रहती थी। वह अपना पेट भरने के लिए जंगल में रोजाना खाने की तलाश में इधर-उधर भटकती और अपना पेट भरती। एक दिन लोमड़ी बहुत भूखी थी। वह खाने की तलाश में जंगल में इधर-उधर भटक रही थी। जंगल में काफी समय तक घूमने के बाद भी उसे खाने को कुछ भी न मिला, तभी उसकी नजर पास के एक बागीचे पर पड़ी।
बागीचा बहुत ही सुन्दर और हरा-भरा था। उस बागीचे से धीमी-धीमी बड़ी ही मीठी महक आ रही थी। उसे लगने लगा कि अब उसकी खाने की तलाश जल्द ही खत्म होने वाली है। वह तेजी से बागीचे से आ रही महक की ओर दौड़ी।
जैसे-जैसे वह बागीचे की ओर आगे बढ़ती, बागीचे से आने वाली महक और भी तेज होती जाती। वह मन ही मन सोचने लगी कि इस बागीचे में कुछ तो खास हैं, जिसे वह खा सकेगी। इसी सोच के साथ वह और तेजी से आगे बढ़ने लगी।
जैसे ही लोमड़ी बागिचे में पहुंची, तो उसने देखा कि बागीचा अंगूर की बेलों से लदा पड़ा है, और सभी अंगूर पूरी तरह से पक चुके हैं। अंगूर देखकर उसकी आंखें चमक उठीं। अंगूरों की महक से उसने इस बात का अंदाजा लगा लिया कि अंगूर बहुत ही रसदार और मीठे होंगे। उसने सोचा कि आज वह पेट भर अंगूर खाएगी।
वह सबसे नजदीक की लटकी हुई अंगूरों के गुच्छों पर एक लंबी छलांग मारी, लेकिन वह अंगूरों तक पहुंच नहीं सकी और धड़ाम से जमीन पर आ गिरी। अंगूरों के गुच्छों तक पहुचने का पहला प्रयास विफल होने पर लोमड़ी ने सोचा, ‘क्यों न फिर से कोशिश की जाए?’
लोमड़ी ने फिर से बहुत जोश और अपनी पूरी ताकत लगाते हुए, पहले से तेज अंगूरों की ओर छलांग लगाई। लेकिन, लोमड़ी का यह प्रयास भी बेकार हो गया। इस बार भी वह अंगूरों तक पहुंचने में नाकामयाब रही, लेकिन उसने अभी भी हार नहीं मानी। उसने मन ही मन सोचा कि, ‘क्या हुआ जो दो प्रयास विफल हो गए, तीसरी बार में मुझे सफलता मिल जाएगी।
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इस बार लोमड़ी ने फिर से दोगुने जोश के साथ, अब तक की सबसे लंबी छलांग लगाने की कोशिश की। उसने अपने शरीर की सारी ताकत लगाई। उसे लगा कि इस बार उसे अंगूर पाने से कोई नहीं रोक सकता, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इस बार भी लोमड़ी का प्रयास बेकार गया और वह जमीन पर आ गिरी।
इतने कोशिश करने के बाद भी, जब लोमड़ी एक भी अंगूर के गुच्छों तक नहीं पहुँच पाई। ऐसे में उसने अंगूर खाने की अपनी आस छोड़ दी और हार मान ली। अपनी विफलता को छिपाने के लिए उसने खुद को समझाया कि, ‘यह अंगूर खट्टे हैं, इसलिए इन्हें मुझे नहीं खाना और, लोमड़ी तेज़ी से जंगल की ओर भूखे ही लौट गयी।
सीख: लोमड़ी और खट्टे अंगूर की इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है, कि हमें कभी भी किसी भी कार्य में तुरंत हार नहीं मान लेनी चाहिए और अपनी कमजोरी छिपाने के लिए बहाना नहीं खोजना चाहिए, जैसा कि लोमड़ी ने अंगूर न मिलने पर अंगूरों को बिना चखे खट्टा कह दिया।
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