गंगा दशहरा: माँ गंगा का धरती पर अवतरण:
वाराह पुराण के अनुसार, ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के दिन हस्त नक्षत्र में गंगा ब्रह्मा के कमंडल से पृथ्वी पर आई थीं। यह तिथि सनातन धर्मियों के लिए पापों से मुक्ति के लिए सबसे अहम और शुभ मानी जाती है।
गंगा दशहरे के दिन लोग गंगा-गोमती या फिर किसी पवित्र तीर्थ स्थान में स्नान और दान पुण्य करते हैं। श्रद्धालु गंगा दशहरे पर केला, नारियल, अनार, सुपारी, खरबूजा, आम, जल भरी सुराई, हाथ का पंखा आदि चीजों का दान करते हैं।
गंगा दशहरा के दिन भगवान शिव का अभिषेक और भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है। साथ ही मोक्षदायिनी मां गंगा का पूजन-अर्चन भी किया जाता है। गंगा दशहरा के दिन किसी भी नदी में स्नान करके दान और तर्पण करने से 10 प्रकार के पापों से मुक्ति, पूजन से व्यक्ति के मन, वचन और कर्म तीनों प्रकार के पापों का नाश हो जाता है।
स्कंदपुराण के अनुसार, गंगा दशहरे के दिन व्यक्ति को किसी भी पवित्र नदी पर जाकर स्नान, ध्यान तथा दान करना चाहिए। गंगा दशहरा के दिन गंगा या किसी पवित्र जल में खड़े होकर ‘ओम नम: शिवाय, नारायनाय दशहराय गंगाये नम:‘ का दस बार जाप करें। अगर किन्हीं कारणवश आप गंगा स्नान को नहीं जा सकते हैं तो ऐसी स्थिति में घर में स्नान के पानी में गंगा जल मिलाकर स्नान करें।
इसके बाद हाथ में फूल लेकर ‘ऊं नमो भगवते ऐड्म ह्री श्री हिली हिली मिली मिली गंगे मां पावय पावय स्वाहा‘ मंत्र का पांच का उच्चारण करें और फिर फूल को पानी में अर्पित कर दें। इसके साथ ही अपने पितरों की तृप्ति के लिए प्रार्थना करें।
स्नान के समय दस दीपों का दान करना ना भूलें। वहीं नदी में दस डुबकी भी लगाएं। इस दिन किया गया कार्य पितरों के मोक्ष के लिए अच्छा होता है।
गंगा दशहरा मनाने का कारण :
ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को हस्त नक्षत्र में, राजा भागीरथ पतित पावनी मां गंगा को धरती पर लाए थे। तब से इस दिन को गंगा दशहरा के तौर पर मनाया जाता है।