नारियल की उत्पत्ति की कहानी:
हिन्दू धर्म में नारियल का पूजा-पाठ में विशेष महत्व है। कोई भी धार्मिक कार्य नरियल के बिना सम्पन्न नहीं होता है। शास्त्रों में भी नारियल को बेहद पवित्र माना गया है, इसका एक अन्य नाम श्रीफल भी है। हिन्दू धर्म शास्त्रों के मान्यताओं के अनुसार नारियल की उत्पत्ति महर्षि विश्वामित्र के द्वारा की गई थी।
आइये जानते हैं कि पूजा-पाठ में विशेष रूप से प्रयोग किया जाने वाले नारियल की उत्पत्ति कैसे हुई?
नारियल की उत्पत्ति की पहली पौराणिक कथा:
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसकी कहानी प्राचीन काल के राजा पृथु के पुत्र राजा सत्यव्रत से जुड़ी हुई है। सत्यव्रत एक प्रतापी राजा थे। जिनका ईश्वर में भरपूर विश्वास था। सब कुछ होने का बाद भी उनकी ये इच्छा थी कि वे किसी भी प्रकार से पृथ्वीलोक से स्वर्गलोक जा सके। परंतु वहां कैसे जाना है यह सत्यव्रत नहीं जानते थे।
तभी उस समय राजा के राज्य में अकाल पड़ा। तब ऋषि विश्वामित्र उसी राज्य में थे। महर्षि विश्वामित्र राज्य के सूखे को दूर करने के लिए कठोर तप की इच्छा से जंगल चले गए और लंबे समय से वापस नहीं आए थे। उनका परिवार भूख-प्यास से भटकने लगा। तब सत्यव्रत ने उनके परिवार की सहायता की और उनकी देखरेख की ज़िम्मेदारी ली।
जब ऋषि विश्वामित्र वापस लौटे तो उन्हें परिवार वालों ने राजा की अच्छाई बताया। वे राजा से मिलने उनके दरबार पहुंचे और उनका धन्यवाद किया। शुक्रिया के रूप में राजा ने ऋषि विश्वामित्र द्वारा उन्हें एक वर देने के लिए निवेदन किया। ऋषि ने भी उन्हें आज्ञा दी। तब सत्यव्रत ने ऋषि विश्वामित्र के सामने अपने जिंदा स्वर्ग जाने की कामना रखी।
अपने परिवार की सहायता का उपकार मानते हुए विश्वामित्र ने जल्द ही एक ऐसा मार्ग तैयार किया जो सीधा स्वर्गलोक को जाता था।यह देखकर इंद्र और अन्य देवता काफी परेशान हो गए उन्होंने ऋषि विश्वामित्र से मदद मांगी लेकिन मुनि अपने वचन से बंधे हुए थे जिसकी वजह से वह कुछ न कर सके। राजा सत्यव्रत खुश हो गए और उस मार्ग पर चलते हुए जैसे ही स्वर्गलोक के पास पहुंचे ही थे कि स्वर्गलोक के देवता इंद्र ने उन्हें नीचे की ओर धकेल दिया।
धरती पर गिरते ही राजा ऋषि विश्वामित्र के पास पहुंचे और सारी घटना बताई। देवताओं के इस प्रकार के व्यवहार से ऋषि विश्वामित्र भी क्रोधित हो गए। अंत में विश्वामित्र ने दूसरा स्वर्ग बनाने का मार्ग खोजा। दूसरे स्वर्ग को बनाने के लिए मुनि ने एक मजबूत खंभे का निर्माण किया। जिस स्वर्ग के राजा सत्यव्रत होंगे।
नए स्वर्गलोक के नीचे एक खंभे का निर्माण किया गया। इस नींव पर दूसरे स्वर्गलोक का निर्माण हुआ, जिसका नाम त्रिशंकु कहलाया। माना जाता है कि यही खंभा समय आने पर एक पेड़ के मोटे ताने के रूप में बदल गया और राजा सत्यव्रत का सिर एक फल बन गया। जिसे श्रीफल या नारियल के रूप में जाना जाता है और आज के समय में हर शुभ कामों के लिए इसका प्रयोग किया जाता है।
यह भी पढ़ें:
नारियल की उत्पत्ति की दूसरी पौराणिक कथा:
शास्त्रों के अनुसार, पृथ्वी पर जब भगवान विष्णु का अवतरण हुआ तो वह बैकुंठ लोक से 3 चीजें लेकर आए, पहली चीज लक्ष्मी, कामधेनु और तीसरा श्रीफल यानि नारियल। श्रीफल को ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रिय फल कहा जाता है। यही कारण है कि नारियल के वृक्ष को पुराणों में कल्पवृक्ष के नाम से भी संबोधित किया गया है। इस वृक्ष पर तीनों देव(ब्रह्मा, विष्णु और महेश) वास करते हैं।
नारियल में उनके वास का प्रमाण भी दिखाई देता है क्योंकि फल में तीन बीज रूपी संकेत दिखाई देते हैं। श्रीफल को तोड़ने के बाद इन बीजों को खाया नहीं जाता है बल्कि भगवान को अर्पित कर दिया जाता है या हवन में आहुति दे दी जाती है।
दरअसल पौराणिक काल में धरती पर पूजन के बाद पशुओं की बलि देने का प्रचलन था, जिसकी वजह से जीवहत्या होती थी। इस जीवहत्या को रोकने के लिए भगवान विष्णु धरती पर श्रीफल लेकर प्रकट हुए ताकि किसी मानव पर जीवहत्या का पाप न लगे और उसकी पूजा भी अधूरी न रहे। तब से नारियल की बलि देने का प्रचलन शुरु हुआ।
तो ये है नारियल की उत्पत्ति से जुड़ी पौराणिक जानकारी। हम आप तक सही जानकारी पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी हिंदू धर्म के मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है, जो विभिन्न माध्यमों (ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों) से संग्रहित कर आप तक पहुंचाई गई हैं। जो केवल सूचनार्थ हैं और “उन्मुक्त हिंदी” इसकी पुष्टि नहीं करता है।)