जीवन पूर्णतया रंगमय होना चाहिए ! प्रत्येक रंग को स्पष्ट दिखना चाहिए और उसका अलग से आनंद लेना चाहिए, और यदि सारे रंगों को यदि मिला दिया जाये तो वह वे सब काले रंग के दिखेंगे। सारे रंग जैसे लाल, पीला, हरा इत्यादि आस पास होना चाहिए और उसी समय उनका आनंद एक साथ लेना चाहिए।
उसी तरह जीवन मे एक व्यक्ति द्वारा निभायी गयी विभिन्न भूमिकाये उसके भीतर शांतिपूर्ण और प्रत्यक्ष रूप से आस्तित्व मे होनी चाहिए।
उदाहरण के लिए यदि कोई पिता कार्यालय में भी पिता की भूमिका निभाने लगेगा तो फिर बातों का बिगड़ना निश्चित हैं। हमारे देश में राजनीतिज्ञ कई बार पहले पिता होते हैं, फिर बाद में नेता होते है।
हम जिस किसी भी परिस्थिति मे हो, हमें उसके अनुरूप सफलतापूर्वक उस भूमिका को निभाना चाहिए, फिर जीवन का रंगमय होना तय है।
इस संकल्पना को प्राचीन भारत मे वर्णश्रम कहते थे। इसका अर्थ था हर कोई यदि वह चिकित्सक, अध्यापक, पिता जो कोई भी या जो कुछ भी हो उसे अपनी भूमिका को पूर्ण उत्साह से निभाना चाहिये। किसी भी दो व्यवसाय के मिलाप से हमेशा उचित परिणाम नहीं मिलते है। यदि किसी चिकित्सक को व्यापार करना है तो वह उसे अलग से करना होगा और अपने व्यवसाय से अलग रखना होगा और अपने चिकित्सिक व्यवसाय को व्यापार नहीं बनाना होगा।
मन के इन भावों को अलग और भिन्न रखना ही सफल और आनंदमय जीवन का रहस्य है और होली हमें यही सिखाती है।
सारे रंग सफेद रंग से उत्पन्न होते है और यदि उन्हें फिर से मिला दिया जाए तो वह काला रंग बन जाते है।जब आपका मन श्वेत या साफ होता है और चेतना शुद्ध, शांतिपूर्ण,प्रसन्न और ध्यानस्थ होती है, तो फिर विभिन्न रंग और भूमिकाये प्रकट होने लगती है, फिर किसी भी विपरीत परिस्थिति के विरुद्ध हमें हर भूमिका को इमानदारी से निभाने की शक्ति मिलती है। हमें समय समय पर अपनी चेतना की गहन अनुभूति करनी चाहिए।
यदि हम अपने भीतर को देखते हुए हमारे बहारी रंगों या भूमिकयो को निभाएंगे तो सब कुछ निरर्थक प्रतीत होना निश्चित है, इसलिए हर भूमिका को इमानदारी से निभाने के लिए दो भूमिका के मध्य मे गहन विश्राम होना चाहिए। गहन विश्राम पाने मे सबसे बड़ी बाधा इच्छा होती है। इच्छा का अर्थ तनाव है। यहाँ तक छोटी इच्छाये भी बड़ा तनाव उत्पन्न करती है। बडे लक्ष इसकी तुलना में कम परेशानी देते है। कई बार इच्छाये मन को परेशान करती है।
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