Subhash Chandra Bose Jayanti: 23 जनवरी 1897 को जन्मे सुभाष चंद्र बोस को रवींद्रनाथ टैगोर ने ‘नेता जी’ की उपाधि दी थी। उनकी जयंती पर हर साल भारत में पराक्रम दिवस मनाया जाता है। स्वतंत्रता संग्राम के इस महानायक की कई कहानियां देशभर में प्रसिद्ध हैं, लेकिन बहुत कम लोगों को ही मालूम है कि नेता जी का झारखंड से भी खास रिश्ता था। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उन्होंने झारखंड (तत्कालीन बिहार राज्य) में कई बार दौरा किया और अपनी अंतिम गुप्त बैठक भी यहीं की थी।
नेता जी सुभाष चंद्र बोस को अंतिम बार झारखंड के धनबाद स्थित गोमो जंक्शन पर देखा गया था, इस घटना का जिक्र कई मीडिया रिपोर्ट्स और 2022 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘मन की बात’ कार्यक्रम में भी किया गया। साल 2009 में, उनके सम्मान में इस रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर नेता जी सुभाष चंद्र बोस गोमो जंक्शन कर दिया गया।
17 जनवरी 1941 को नेता जी अपने भतीजे डॉ. शिशिर बोस के साथ अंग्रेजों की नजरों से बचते हुए गोमो पहुंचे। वे हटियाटाड़ के जंगलों में छिपे रहे, जहां उन्होंने स्वतंत्रता सेनानी अलीजान और अधिवक्ता चिरंजीव बाबू के साथ गुप्त बैठक की। इसके बाद, स्थानीय लोगों की मदद से उन्हें गोमो के लोको बाजार स्थित कबीलेवालों की बस्ती में ठहराया गया।
1930-1941: झारखंड के धनबाद में कई बार आए नेता जी
सुभाष चंद्र बोस का धनबाद से गहरा नाता रहा। साल 1930 से 1941 के बीच, उन्होंने झारखंड (तत्कालीन बिहार राज्य) कई बार दौरा किया। 1930 में उन्होंने टाटा कोलियरी मजदूर संगठन की स्थापना की, जो देश का पहला पंजीकृत मजदूर संगठन था। इस संगठन के अध्यक्ष के रूप में, उन्होंने मजदूरों को संगठित करने और उनके अधिकारों की लड़ाई शुरू की।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस 18 जनवरी 1941 की रात पठान के वेश में गोमो स्टेशन से ही पेशावर मेल से रवाना हुए थे, वही पेशावर मेल बाद में कालका मेल और अब वर्तमान में नेताजी एक्सप्रेस के नाम से जाना जाता है। इसी ट्रेन में नेताजी अपने गंतव्य के लिए रवाना हुए।
उनकी इस यात्रा को निष्क्रमण यात्रा के रूप में याद किया जाता है, ऐतिहासिक दस्तावेज बताते हैं कि जब नेताजी सुभाषचंद्र बोस को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर नजरबंद कर दिया था तो नेताजी ने भेष बदल कर भागने की योजना बनाई। उनकी इस रणनीति में उनके मित्र सत्यव्रत बनर्जी साथ थे। सत्यव्रत बनर्जी ने इसे महाभिनिष्क्रमण यात्रा का नाम दिया था।
2 जुलाई 1940 को हॉलवेल मूवमेंट के दौरान नेताजी को भारतीय रक्षा कानून की धारा 129 के तहत कोलकाता में गिरफ्तार किया गया था. प्रेसीडेंसी जेल में उन्होंने आमरण अनशन किया, जिससे उनकी तबीयत बिगड़ गयी, गिरते स्वास्थ्य को देखते हुए अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें पांच दिसंबर 1940 को इस शर्त पर रिहा किया कि तबीयत ठीक होते ही उन्हें पुन: गिरफ्तार किया जा सकता है, यहां से रिहा होने के बाद एल्गिन रोड स्थित अपने आवास चले गये।
गोमो के स्थानीय लोग आज भी नेता जी सुभाष चंद्र बोस के सम्मान में 18 जनवरी को विशेष आयोजन करते हैं, नेता जी एक्सप्रेस ट्रेन के लोको पायलट, सहायक लोको पायलट और ट्रेन मैनेजर को माला पहनाकर सम्मानित किया जाता है, ट्रेन के इंजन पर नेता जी की तस्वीर लगाई जाती है और यह परंपरा सालों से जारी है।
नेता जी का झारखंड से रहा गहरा नाता
झारखंड में सुभाष चंद्र बोस ने न केवल स्वतंत्रता संग्राम के लिए गुप्त बैठकें कीं, बल्कि मजदूर आंदोलन की नींव भी रखी। यही हटियाटाड़ के जंगलों में उनकी गतिविधियां आज भी यहां के लोगों की यादों में बसी हैं, झारखंड का धनबाद जिला और गोमो जंक्शन नेता जी की गुप्त रणनीतियों का गवाह है।
सुभाष चंद्र बोस ने अपने अदम्य साहस और नेतृत्व से देश को स्वतंत्रता संग्राम की नई दिशा दी। उनकी झारखंड यात्रा, मजदूरों का संगठन, और गुप्त बैठकों ने आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई। उनकी कहानी झारखंड के हर कोने में गूंजती है और आज भी प्रेरणा का स्रोत है।