भेड़िया और सारस – नैतिक शिक्षा की कहानी:
एक बार एक भेड़िया किसी जानवर का माँस को खा रहा था और माँस को जल्दबाज़ी में खाने के कारण उसके गले में एक हड्डी फँस जाती है। काफी कोशिशें करने के बाद भी भेड़िया हड्डी बाहर नही निकाल सका। अब वो एक बहुत ही बुरी स्थिति में फस चुका था।
वह सोचने लगा कि, “अगर यह हड्डी मेरे गले में युहीं फँसी रही और बाहर नही निकली, तो मैं कुछ भी खाने – पीने नहीं सकूँगा और भूख-प्यास से तड़पकर मर जाऊँगा।”
भेड़िया अब अपने गले में फँसी हड्डी को निकालने के लिए कोई उपाय सोच ही रहा था, कि उसे तभी एक सारस दिखा, जिसकी चोंच लम्बी थी। उसको देखते उसको एक सुझाव आया की सारस उसकी गले में फँसी हुई हड्डी को निकालने में उसकी मदद कर सकता है।
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वह मदद के लिए सारस के पास गया और उसने सारस से कहा कि, “वो उसकी गले में फँसी हुई हड्डी निकालने में मदद करे, बदले में वह सारस को इनाम देगा।”
पहले तो, सारस भेड़िये के मुँह में अपनी चोंच डालने की बात से घबराया। लेकिन, भेडिये के बार-बार बोलने और इनाम के लालच में सारस ने हाँ कर दी और कुछ ही समय में सारस ने भेडिये के गले में फँसी हुई हड्डी निकाल दी।
भेड़िया गले से हड्डी निकलते ही वहाँ से जाने लगा, तब सारस ने उससे कहा, “मेरा इनाम कहाँ हैं?”
तब भेड़िये ने सारस से कहा कि, “तुम्हारा सिर, मैंने अपने मुँह में होने के बाद भी बिना दबोचे ही बाहर निकालने दिया, और तुम सही-सलामत हो, क्या यह किसी इनाम से कम है।”
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नैतिक शिक्षा: धूर्त लोगों से आभार या कृतज्ञता की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए।
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