तिल द्वादशी दान-पुण्य का महत्व क्यों:
तिल द्वादशी के दिन व्रत करने से धन, धान्य, संपत्ति व परिवारिक सुख मे बढ़ोत्तरी और रोगों/मानसिक परेशानी का अंत और पवित्र नदियों में स्नान व दान करने से शुभ फलों की प्राप्ति और जाने अनजाने मे किए गए पापो से मुक्ति प्राप्त होती है।
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शास्त्रो के अनुशार इस व्रत को भगवान श्री कृष्ण स्वयं का स्वरूप कहा है, जो व्यक्ति को जन्मांतरों के बंधन से मुक्त कर देता है और वैकुंठ प्राप्ति का साधक बनता है। यह व्रत समर्पित है श्री विष्णु जी को और उनकी कृपा प्राप्त करने हेतु इसे किया जाता है।
तिल द्वादशी व्रत सभी प्रकार का सुख वैभव देने वाला और कलियुग के समस्त पापों का नाश करने वाला है। मन के अंधकार को दूर करते हुए यह जीवन में प्रकाश का संचार करता है। मन मे सकरात्मक सोच मे वृद्धि होती है।
तिल द्वादशी का महत्व
तिल द्वादशी के दिन भगवान को धूप व दीप दिखाकर, फल, फूल, चावल, रौली, मौली, पंचामृत से स्नान आदि कराने के बाद भगवान को तिल से बनी वस्तुओं या तिल तथा गुड़ से बने प्रसाद का भोग लगाना चाहिए। इस दिन व्रतधारी को पीले वस्त्र धारण करने चाहिए। इस व्रत को भगवान श्री कृष्ण स्वयं का स्वरूप कहा है।
तिल द्वादशी व्रत से सुख और वैभव की प्राप्त होती है समस्त पापों का नाश होता है। इस दौरान ब्राह्मण को तिल का दान, पितृ तर्पण, हवन, यज्ञ, आदि का काफी महत्व है। इस दिन व्रत रखने वाले जो व्यक्ति व्रत नहीं रखते हैं, वे भी अगर अपनी क्षमता के अनुसार गरीबों को दान करते हैं तो शुभ फल की प्राप्ति होती है। भगवान श्री विष्णु के विधिवत पूजन से घर-परिवार के सुख व समृद्धि में वृद्धि होती है।
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