दूसरों पर निर्भरता का परिणाम है कुंठा :
Frustration क्या होता है और इसके क्या कारण हैं जो किसी भी व्यक्ति को सिमित और अकेला करता हैं।
कुंठा (Frustrations): दूसरों को श्रेष्ठ समझना और स्वयं को हीन समझने का परिणाम और इसके दोषी कुंठित व्यक्ति नहीं, वे माँ-बाप और समाज होते हैं जो व्यक्ति को जैसा है वैसा ही स्वीकार नहीं कर पाते।
जो कप को गिलास और गिलास को मग बनाने की जुगत में लगे रहते हैं।
इसका परिणाम होता है कि व्यक्ति स्वयं को विकृत करना शुरू कर देता है और कुछ अलग दिखने के प्रयास में लग जाता है क्योंकि उनका अंतर्मन कहता रहता है कि वे जो होने के लिए आये थे, वे नहीं हो पाए या हो पा रहे हैं क्योंकि परिवार और समाज आड़े आ रहा है जो परिवार और समाज से लड़ पाते हैं वे महान हो जाते हैं। वे आविष्कारक बनते हैं या सचिन तेंदुलकर, वे हिटलर बनते हैं या मदर टेरेसा।
जिनको माँ या बाप का साथ मिलता है वे दुनिया से लड़ जाते हैं और थॉमस एडिसन बनते हैं।कई बार यही अलग होने और कुछ विशिष्ट करने की प्रवृति और समाज के प्रति घृणा उसे हिंसक व आत्मघाती बना देती है कुछ को सही दिशा या गुरु नहीं मिल पाते और टूट जाते हैं, तो वे आत्महत्या भी कर लेते हैं…जो आत्महत्या भी नहीं कर पाते वे कुंठा में जीते हैं।
कुंठाएँ भी कई प्रकार की होती हैं, जैसे शंकराचार्यों को ही लें…. वे स्वयं धर्म को नहीं समझ पाए और न ही उसका प्रचार कर पाए, तो कुंठाग्रस्त हो गये और अब फ़कीर का विरोध करने लगे ,क्योंकि जो काम उन्हें करना चाहिए था वह तो उनसे हुआ नहीं, तो दूसरों को भी रोको.
पार्कों में प्रेमी जोड़ों के पीछे दौड़ते पुलिस और कथित समाज सुधारक … ये भी कुंठित लोग ही हैं।
ये भी अपनी जिम्मेदारी निभा नहीं पाते गुंडों और नेताओं के दबाव में, इसलिए भड़ास निकालते हैं बच्चों को नैतिकता के नाम पर खदेड़ कर।
” माँ-बाप की कुंठा भी बच्चों के जीवन को नरक बना देता है ” वे दूसरों के बच्चों से उतने ही अधिक प्रभावित रहते हैं, जितने कि कोई पति दूसरों की पत्नी से या पत्नी दूसरों के पति से , वे जानना ही नहीं चाहते के जो उनके साथ है उनमें खूबियाँ क्या हैं…?
उन्हें केवल बुराई ही दिखाई देती है और दूसरों में केवल अच्छाई , परिणाम होता है पति-पत्नी में तलाक और बच्चे अपने पैरों में खड़े होते ही फुर्र….. !
फिर लाख दुहाई दो उन्हें अपने प्रेम और त्याग की कोई लाभ नहीं होता ,क्योंकि वह समय निकल गया होता है जब वे आपके दर्द को भी महसूस कर रहे थे और अपने दर्द को छुपा रहे थे लेकिन तब आपने उनके दर्द को समझने का प्रयास ही नहीं किया था।
इसलिए अपनी कुंठाओं को पहचानिए और उसे अपने व परिवार के लिए घातक न बनाएं।
अंत में :- कुंठाएँ ईश्वरीय भेंट नहीं है जिसे आप संभाल कर रखें, फेंक दें इसे बाहर और खाली कर दे स्वयं को कुंठाओ से ताकि स्वयं से परिचय हो सके।